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How was Osho

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  Osho lived luxuriously both on outer and inner level. Throughout his life, he worked for the formation of new man who will be a poet, a scientist and a mystic altogether.He spoke on his own authority, mesmerising tone and a unique clarity. His life can be divided into three phases:childhood, adolescent period in which he claimed himself to have become enlightened, roamed throughout the nation searching for genuine seekers, late phase in which he guided his 10000 disciples into the meditations in the ashram resting unto life. Birth and childhood: Osho was born on 11 December, 1931 in kuchwada, a small village located in Madhya pardeshi. He was eldest son among 11 of Babulal and saraswati Jain who was a cloth merchant. However, according to osho in his some articles he was secretly adopted. He was a brilliant student and a gifted debater. However he lived with his ‘nani and nana’ that is maternal grandparents. House where osho spent his childhood Osho’s nani His childhood image He was

गीता दर्शन ( अध्याय 11) प्रवचन 7

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  गीता दर्शन ( अध्याय 11) प्रवचन 7 चेतना की चार अवस्थाएं है। पहली जहां मैं की भीड़ है। वहां से हमे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। जब तक ठीक हमारी आंख के सामने ना आ जाए। हमे कुछ दिखाई नहीं पड़ता। फिर एक मैं रह जाए। हमारी दृष्टि बढ़ जाती है। हम ऊंचे तल पर आ गए। भीड़ से ऊपर उठ गए। एक वृक्ष पर बैठे हुए हैं। हमे दूर तक दिखाई पड़ने लगता है। कोई चीज़ आती है, उसके पहले दिखाई पड़ने लगती है। फिर तीसरा और ऊंचा तल है, जहां कि मुझे पता चल गया कि मैं नहीं हूं। ये बड़ी ऊंचाई आ गई। इस ऊंचाई से वो चीज़े दिखाई पड़ने लगती हैं जो बहुत दूर हैं।  कभी होंगी। फिर एक और ऊंचाई है, जहां मैं हूं, ये भी नही बचा। ये आखिरी ऊंचाई है। इस से ऊपर जाने का कोई उपाय नहीं है। यहां से सब दिखाई पड़ने लगता है। ऐसी अवस्था के व्यक्ति को हमने सर्वज्ञ कहा है। इसके लिए फिर कुछ भविष्य नहीं रह जाता। इसके लिए सभी वर्तमान हो जाता है। ये जो कृष्ण में अर्जुन को दिखाई पड़ा, कृष्ण कहते हैं _ हे अर्जुन, मैं इन योद्धाओं का अंत करने आया हूं। इस समय मैं महाकाल हूं। इसकी ही झलक तूने देख ली जो थोड़ी देर बाद होने वाला है।उसकी पूर्व झलक तुझे दिखाई पड़ ग

गीता दर्शन ( अध्याय 11)

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गीता दर्शन ( अध्याय 11) प्रवचन 6 क्रोध क्या है? अस्थाई पागलपन है। ज़रा देर के लिए आप पागल हो गए। फिर संभाल लेते हैं अपने को।  बड़ी अच्छी बात है कि फिर संभाल लेते हैं। लेकिन वो जो घड़ी भर में प्रकट होता है, उसे कभी आपने ख्याल किया है? कि क्या होता है? ये जो विक्षिप्तता है वो इस दृष्टि का परिणाम है कि हम कुछ कर सकते हैं। हम जिंदगी को बदल सकते हैं।  हम जिंदगी वैसी बनाना चाहते हैं, वैसी जिंदगी बन सकती है।  कोई नियति नही है।  भविष्य मुक्त है। और हमारे हाथ में है। मैं नही कहता कि ये गलत है। ये हो सकता है। पश्चिम में करके देखा है। हमने भी बहुत बार करके देखा है।  लेकिन इसका परिणाम ये होता है कि भविष्य तो हमारे हाथ में थोड़ा बहुत चलने लगता है, लेकिन हम बिल्कुल पटरी से उतर जाते हैं। भविष्य को चलाने में आदमी अस्त व्यस्त हो जाता है। इसलिए भविष्य को छोड़ दो परमात्मा पर। वो अपरिहार्य है। जो होना है, वो होके रहेगा। आप बीच में कुछ भी नही हैं। इसका परिणाम ये होता है की आप तत्क्षण मुक्त हो गए भविष्य से। अब कोई चिंता ना रही। सुख आएगा कि दुख आएगा। अच्छा होगा कि बुरा होगा। बचेंगे कि नही बचेंगे। अब आपके हाथ

गीता दर्शन

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गीता दर्शन ( अध्याय 12) प्रवचन 8 एक मित्र ने पूछा है कि, यदि मनुष्य को अपनी सारी इच्छाएं ही छोड़नी हैं तो फिर,  जीवन का लक्ष्य क्या है? शायद उनका ख्याल हो कि इच्छाओं को पूरा करना ही जीवन का लक्ष्य है। इच्छाएं तो पूरी होती नहीं। कोई इच्छा पूरी होती नहीं। एक इच्छा पूरी होती है तो,  दस को पैदा कर जाती है। और श्रृंखला शुरू हो जाती है। जीवन का लक्ष्य इच्छाओं को,  पूरा करना नही है। जीवन का लक्ष्य इच्छाओं के बीच से इच्छारहितता को उपलब्ध हो जाना है। जीवन का लक्ष्य इच्छाओं से गुज़र के इच्छाओं के पार उठ जाना।  क्यूंकि जैसे ही कोई व्यक्ति सभी इच्छाओं के पार उठ जाता है वैसे ही उसे पता चलता है कि जीवन की परम धन्यता इच्छाओं में नही थी। इच्छाओं से तो तनाव पैदा होता था, खिंचाव पैदा होता था।   इच्छाओं से तो मन दौड़ता था।  थकता था। गिरता था। परेशान होता था। इच्छा शून्यता से प्राणों का मिलन अस्तित्व से हो जाता है। क्यूंकि कोई दौड़ नही रह जाती। कोई भाग दौड़ नही रह जाती।  जैसे झील शांत हो जाएं  और कोई लहरें ना हों। तो शांत झील में जैसे  चांद का प्रतिबिंब बन जाए। ऐसा ही जब इच्छाओं की  कोई लहर नहीं होती। और

Osho Meditation

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Osho meditation is an opportunity to feel the unknown, to be more close to the existence, to taste the mystery. Practicing it will open the new door of possibilities. Possibility of freedom from the known. Possibility of a germination within you. Yes , osho meditation techniques work, if you do it whole heartedly, with passion, and as directed. Give your 100% , with your total energy, nothing should be left behind, then you can see results if it works for you or not. To start with, if possible, it is better to participate in a three day meditation camp anywhere near your location. Remember, osho has evolved 112 meditation techniques, you can choose which suits you. Most of techniques are one hour long and divided into three broad parts. Doing, No doing and Let-go (Happening). First part is of doing. here you have to do totally with your all energy as directed. Second part is of no doing. In this you have to stop all your movements and be still. In first part we are doing consciously an
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Osho not only the name, spiritual guru but an era below are some famous quotes of Osho that will experience you the great way of living. “If you love a flower, don’t pick it up. Because if you pick it up it dies and it ceases to be what you love. So if you love a flower, let it be. Love is not about possession. Love is about appreciation.” ― Osho “Experience life in all possible ways -- good-bad, bitter-sweet, dark-light, summer-winter. Experience all the dualities. Don't be afraid of experience, because the more experience you have, the more mature you become.” ― Osho “Sadness gives depth. Happiness gives height. Sadness gives roots. Happiness gives branches. Happiness is like a tree going into the sky, and sadness is like the roots going down into the womb of the earth. Both are needed, and the higher a tree goes, the deeper it goes, simultaneously. The bigger the tree, the bigger will be its roots. In fact, it is always in proportion. That's its balance.” ― Osho  “To be crea